अर्चना वर्मा अर्चना वर्मा की कविताएँ

पहरा

जहां आज बर्फ़ है

बहुत पहले

वहां एक नदी थी.

एक चेहरा है निर्विकार

जमी हुई नदी.

आंख, बर्फ़ में सूराख.

द्वार के भीतर

है तो एक संसार मगर

कैद

हलचलों पर मुस्तैद

महज अंधेरा है

सख्त और खूंख्वार और गहरा है.

पहरा है उस पर जो

बर्फं की नसों में बहा

नदी ने जिसे जम कर सहा.

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