डा. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का लेखन कल्पना का हिंदी लेखन

सूचना तकनीक और हिंदी

हमारे यहां आम धारणा यह है कि कम्प्यूटर पर अंग्रेज़ी जाने बगैर काम कर पाना सम्भव नहीं है. इस धारणा के मूल में यह तथ्य है कि कम्प्यूटर का विकास जिन पश्चिमी देशों में हुआ वहां की भाषा अंग्रेज़ी थी. इसलिए यह स्वाभाविक भी था कि कम्प्यूटर और अंग्रेज़ी के बीच एक रिश्ता हमने मन ही मन कायम कर लिया. इसी के साथ यह बात भी कि क्योंकि अंग्रेज़ी का एक बहुत बडा बाज़ार है, उसे देखते हुए कम्प्यूटर के अनेक सॉफ्ट्वेयर शुरू में अंग्रेज़ी में ही विकसित हुए. सॉफ्ट्वेयर की दुनिया में माइक्रोसॉफ्ट का लम्बे समय तो एकाधिकार ही रहा, वर्चस्व अब भी है, उसने भी अपने प्रारम्भिक सॉफ्टवेयरों के लिए अंग्रेज़ी को ही चुना. कम्प्यूटर से हमारी जान-पहचान बनाने और बढाने में भी इन सॉफ्ट्वेयर्स की बडी भूमिका रही, इसलिए यह धारणा और भी पुख्ता होती चली कि कम्प्यूटर पर अंग्रेज़ी के बिना काम सम्भव नहीं. लेकिन, यह एक भ्रामक धारणा थी.

दर असल बेचारे कम्प्यूटर की तो अपनी कोई भाषा ही नहीं होती. भाषा तो होती है सॉफ्ट्वेयर्स की. कम्प्यूटर तो एक ही भाषा जानता-समझता है, जिसे बाइनरी भाषा कहा जाता है और जो महज़ दो अंकों - शून्य और एक से बनती है. इन्हीं के संयोजन से कम्प्यूटर अपने उपयोग कर्ता द्वारा दिए गए निर्देशों को ग्रहण करता है. कम्प्यूटर की दुनिया में एक बहुत लोकप्रिय भाषा व्यवस्था है अमेरिकन स्टैण्डर्ड कोड फॉर इंफर्मेशन इण्टरचेंज, जिसे संक्षेप में ASCII 7 नाम से जाना जाता है. यह भाषा सात अंकों पर आधारित है इस लिए इसके नाम के साथ 7 जुडा है. इसका प्रयोग रोमन लिपि के लिए होता है. इसी तरह भारतीय भाषाओं के भण्डारण के लिए इण्डियन स्टैंडर्ड कोड फॉर इंफर्मेशन इण्टरचेंज यानि ISCII 8 प्रयुक्त होती है. इन दोनों कम्प्यूटर भाषाओं का प्रयोग बहुत लम्बे समय से होता रहा. अंग्रेज़ी में तो ठीक लेकिन भारतीय भाषाओं के प्रयोग में इस्की 8 के चलते अनेक परेशानियां दरपेश आती रहीं. हम सब जानते हैं कि हिन्दी में अभी टंकण का मानक कुंजी पटल नहीं है और हिन्दी के फॉण्ट्स को लेकर भी अभी असुविधा जनक स्थितियां बनी हुई हैं. सभी कम्प्यूटर मशीनों पर सभी फॉण्ट नहीं होते, परिणाम यह कि मैंने जिस फॉण्ट का प्रयोग कर कोई डॉक्यूमेण्ट बनाया, वह फॉण्ट अगर आपकी मशीन पर स्थापित नहीं है तो मेरा डॉक्यूमेण्ट आपके लिए व्यर्थ है. यह समस्या तब और विकट हो जाती है जब हम इसके साथ यह जोडते हैं कि भारत में हिन्दी के अलावा 160 से ज़्यादा भाषाएं हैं. 22 भाषाएं तो हमारे संविधान की आठवीं अनुसूची में ही शामिल हैं. इनमें से अनेक की स्वतंत्र लिपियां भी हैं. तो, स्वाभाविक है कि कोई गुजराती लिपि में रचित कुछ सामग्रीमुझे भेजे तो मैं उसे नहीं पढ सकता, अगर मेरे कम्प्यूटर पर गुजराती फॉण्ट न हों. इसके अलावा, एक और बात. थोडी रोचक, थोडी दुखद. हम लोग हिन्दी भाषी हैं. लेकिन हममें से बहुतों को हिन्दी वर्णमाला ही ठीक से नहीं आती. यानि वर्णक्रम. किस अक्षर के बाद कौन-सा अक्षर आता है, यह बात.

इसलिए भी हम लोग कम्प्यूटर पर हिन्दी का प्रयोग करने में झिझकते-अटकते रहे. इसकी परिणति इस बात में हुई कि हिन्दी सॉफ्टवेयर्स के निर्माण की गति धीमी रही. और इन सब वजहों से यह धारणा बनती चली गई कि कम्प्यूटर हिन्दी के काम का नहीं, या हिन्दी कम्प्यूटर के काम की नहीं. लेकिन अब बहुत तेज़ी से यह तस्वीर बदल रही है. यह तो बाज़ार और मुनाफे का युग है. कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर की दुनिया में माइक्रोसॉफ्ट का लगभग एकछत्र राज्य है. इतने बडे हिन्दी बाज़ार की उपेक्षा वह कैसे कर सकता है? उसने अपने करीब-करीब सारे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय सॉफ्टवेयर या तो हिन्दी में जारी कर दिए हैं, या उनके लिए हिन्दी इण्टरफेस उपलब्ध करा दिए हैं. हममें से अधिकांश का काम उनके ऑपरेटिंग सिस्टम से पडता है, तो एक्स पी हिन्दी में उपलब्ध है, और फिर ज़रूरत पडती है ऑफिस सुइट की, तो वह भी हिन्दी में है. अगर किसी के पास पहले से अंग्रेज़ी वाला सॉफ्ट्वेयर है तो वह माइक्रोसॉफ्ट की साइट (भाषाइण्डिया डॉट कॉम) से इनके लिए हिन्दी इण्टरफेस डाउनलोड कर सकता है. माइक्रोसॉफ्ट के एकाधिकार को चुनौती देने वाले मुक्त सॉफ्टवेयर लिनक्स भी हिन्दी में भी उपलब्ध हैं.

यह तो हुई एक बात.

मैंने भी की बोर्ड और फ़ॉंट्स की समस्या की चर्चा की थी. दर असल इस शताब्दी के पहले दशक का सबसे बडा उपहार है यूनीकोड. यह यूनीकोड आस्की और इस्की के मीलों आगे की चीज़ है. इसके आने से फॉण्ट्स की सारी समस्या ही खत्म हो गई है. अब अगर आपने यूनीकोड में कुछ टाइप किया है तो किसी को उसे पढने के लिए फ़ॉण्ट डाउनलोड करने की ज़रूरत नहीं. मशीन में वे फ़ॉण्ट हों, इसकी भी ज़रूरत नहीं. तो फ़ॉण्ट्स की स्मस्या तो एक ही झटके में खत्म हो गई है. रही-सही जो दिक्कत हम हिन्दी वालों के लिए की बोर्ड की थी, उसे माइक्रोसॉफ्ट ने वेब दुनिया के साथ मिलकर जो एक इण्डिक इनपुट मेथड एडिटर (इण्डिक आई एम ई) की बोर्ड विकसित किया, उसने खत्म कर दिया. इस मुफ्त में डाउनलोड किए जा सकने वाले सॉफ्टवेयर में हिन्दी के कई की बोर्ड हैं, और साथ ही है एक ध्वन्यात्मक की बोर्ड भी, जिसके द्वारा आप रोमन के माध्यम से हिन्दी टाइप कर सकते हैं.यानि आपको अगर राम टाइप करना है तो करें आर ए एम ए. तो तकनीकी समस्याएं तो करीब-करीब दूर हो गईं.

इनके कारण, बल्कि, इनसे भी पहले से, लोग कम्प्यूटर पर हिन्दी के काम में जुटे हुए हैं. उनके प्रयत्नों का ही सुफल है कि आज हिन्दी में कोई ऐसा काम नहीं जो कम्प्यूटर पर सम्भव न हो.

हिन्दी में लगभग सारे सॉफ्टवेयर हैं, गूगलसर्च, भोमियो, गुरुजी, आदि के जरिये हिन्दी में सर्च सम्भव है, विकीपीडिया हिन्दी में भी विश्वकोशीय सूचनाएं उपलब्ध कराता है,हिन्दी में ईमेल किया और प्राप्त किया जा सकता है, हिन्दी में चैट की जा सकती है, हिन्दी के लगभग सारे बडे और लोकप्रिय अखबार जैसे नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, राजस्थान पत्रिका, नवज्योति, भास्कर, प्रभासाक्षी आदि इण्टरनेट पर उपलब्ध है.

हिन्दी की महत्वपूर्ण पत्रिकाएं जैसे इण्डिया टुडे, आउअटलुक वगैरह तो इण्टरनेट पर उपलब्ध हैं ही, उत्कृष्ट साहित्यिक पत्रिकाएं जैसे हंस, तद्भव, नया ज्ञानोदय, वागर्थ, ताप्तीलोक, मधुमती, आदि भी इण्टरनेट पर उपलब्ध हैं. और भी महत्वपूर्ण बात यह कि तहलका जैसे प्रकाशन ने अपना हिन्दी संस्करण इण्टरनेट पर पहले शुरू किया है. इसका मुद्रित संस्करण अभी प्रतीक्षित ही है.

हिन्दी में अनेक साहित्यिक पत्रिकाएं केवल इण्टरनेट पर चल रही हैं, जैसे अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिन्दी नेस्ट, कृत्या, सृजनगाथा, इन्द्रधनुष इण्डिया आदि.

इधर इण्टरनेट पर एक नई क्रांति हुई है ब्लॉग्ज़ के रूप में. ब्लॉग्ज़ ने लेखन और प्रकाशन का जैसे चेहरा और चरित्र ही बदल दिया है. आप जो चाहे लिखें, जब चाहे, जैसे चाहें, उसे प्रकाशित करें. कोई प्रकाशक, कोई सम्पादक बीच में आपकी रचनाशीलता को अवरुद्ध नहीं करता. हिन्दी में इस समय लगभग तीन हज़ार ब्लॉग चल रहे है और उन पर गम्भीर, अगम्भीर, कला, संस्कृति, संगीत सब कुछ उपलब्ध है. हिन्दी के अनेक जाने माने लेखक नियमित ब्लॉग्ज़ लिखते हैं, और बहुत साधारण लोग भी अपने विचार, अपनी रचनाएं ब्लॉग्ज़ पर डालते हैं. जैसे विचारों का सही प्रजातंत्र यहां आकार ले रहा है.

इण्टरनेट पर हिन्दी की इस धमाकेदार दस्तक के मूल में सी डैक जैसे सरकारी और माइक्रोसॉफ्ट जैसे व्यावसायिक संस्थानों ने तो महत्वपूर्ण भूमिका अदा की ही है, बालेन्दु दाधीच, रवि रतलामी, जयप्रकाश मानस जैसे उत्साही और कर्मठ धुन के धनियों का योगदान भी कम नहीं है.

आज का युग बाज़ार का युग है. इस युग में हम हिन्दी को जितना ही अपनाएंगे, बाज़ार भी उतना ही आगे आएगा. अगर हम हिन्दी का प्रयोग करेंगे तो नए सॉफ्टवेयर भी आएंगे. भारत जैसे बहुभाषीय देश में भारतीय भाषाओं के लिहाज़ से कम्प्यूटर के क्षेत्र में अभी भी अनंत सम्भावनाएं हैं.

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