ओमप्रकाश दीपक का लेखन कल्पना का हिन्दी लेखन जगत

अंधेरे में टटोलनाः मेरी कहानियां

दिल्ली, 30.04.1966

मैं कम लिखता हूँ, जो इसी से जाहिर है कि पिछले लगभग दस सालों, 1956 से 1965 तक की मेरी अधिकांश कहानिया इस पुस्तक में संग्रहीत हैं. कहानियों को मैंने रचना क्रम के अनुसार ही रखा है.

इन कहानियों के बारे में मेरे किसी तरह के दावे नहीं हैं. इनमें से अधिकांश को मैं प्रयोग की संज्ञा भी नहीं दे पाता, केवल अंधेरे में टटोलना कह सकता हूँ. पुरानी कहानियों को संशोधित करने का लोभ मैंने रोका है, और एक कहानी, "वक्त", का शीर्षक बदलने के अतिरिक्त उसी रुप में रहने दिया है,जिस रुप में वे प्रकाशित हुई थीं. संग्रह की सभी कहानियां, "ज्ञानोदय", "कल्पना", "लहर", "कहानी", "नवलेखन" और "धर्मयुग" में पहले प्रकाशित हो चुकी हैं.

कहानियां लिखना मेरे लिए आईने बनाने जैसा रहा है, जिनमें मैंने अपनी और जिंदगी की शकल देखने की कोशिश की है. अपनी कहानियों का कोई एक रुप मैं स्थिर नहीं कर पाया हूँ, कथ्य, सामग्री, गठन, शिल्प, रुपाकार, किसी भी दृष्टी से नहीं, यह मेरी मजबूरी है. फिर भी इन बारह कहानियों को एक साथ पढ़ने के बाद लगा कि शायद एक बुनियादी बात है जो मुझसे कहानियां लिखवाती है, और वह बात कम या ज्यादा इन सारी कहानियों में है, हमारी, यानि हिन्दुस्तानी आदमियों की जिन्दगी में एक साथ विद्यमान अनगिनत समानान्तर संसार, व्यक्तियों के और न जाने कितने छोटे बड़े समूहों के. और इन संसारों को बांटने वाली जाने कैसी दीवारें हैं जो अभेद तो हैं ही, आम तौर पर अदृष्य भी हैं. इसलिए इन कहानियों की बुनावट में अक्सर कुछ धागों के खुले हुए सिरे हैं, यह भी मेरी मजबूरी है. एक से अधिक समानान्तर क्षण जो जो देखने में बिल्कुल गुंथे हुए लगते हैं, उन्हें जब प्रतिबिम्बित करने की चेष्टा की है, तो इन अदृष्य दीवारों पर आ कर धागे टूट गये हैं. दीवारें शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक, सांस्कृतिक, सास्कारिक, सभी तरह की हैं, कहीं कोई एक, कहीं दो या ज्यादा मिली हुई.

साहित्य के क्षेत्र में कितनी ही दूकाने हैं, कितने ही झंडे और बिल्ले. उनमें से किसी में भी मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है. इसका मतलब यह नहीं कि मेरी कोई राय नहीं है. राय है. लेकिन मेरी राय से अलग, ये कहानियां जैसी हैं, वैसी हैं. समानान्तर संसारों की बात भी, इस सन्दर्भ में वहीं तक सार्थक है,जहां तक वह इन कहानियों में उभरती है.

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टिप्पणी: यह पंक्तियां दीपक जी ने अपने कहानी संग्रह के छपने के लिए लिखी थीं, पर कहानी संग्रह न छपने की वजह से इसका उपयोग नहीं किया गया था.

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